कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। कुछ ऐसा ही चन्द्रगुप्त नाम के बालक के साथ हुआ था, जो बचपन में खेल-खेल में राजा बनने का खेल खेलता था और युवा होते ही वास्तव का एक राजा बन गया। यह राजा एक महान शासक के रूप में और पहली बार भारत को एक अखंड भारत का रूप देने में भी सफल सिद्ध हुआ था। इसी कारण Chandragupta Maurya को महान चन्द्रगुप्त की उपाधि भी दी जाती है। इसके अलावा यह एक ऐसे शासक के रूप में भी जाने जाते हैं जिनका विवरण देशी ही नहीं बल्कि विदेशी ऐतिहासिक प्रमाणों में भी पाया जाता है।
असाधारण बालक का साधारण परिचय:
चन्द्रगुप्त के जन्म से संबन्धित अनेक प्रमाण पाये जाते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त के पिता नेपाल के तराई में एक छोटे से गणराज्य पिप्पलीवन के राजा थे। उनकी शत्रुओं द्वारा हत्या कर दिये जाने की स्थिति में चन्द्रगुप्त को उनकी माता पाटलीपुत्र ले आई थीं। वहीं कुछ विद्वान मानते हैं कि चन्द्रगुप्त की माँ ‘मुरा’ एक भीलनी थीं और वह मगध सम्राट घनानन्द के राजदरबार में एक नर्तकी थीं और पिता नन्द के दरबार में एक उच्च पद के सेना अधिकारी थे। नन्द द्वारा पिता को मार दिये जाने पर मूरा अपने पुत्र को लेकर जंगलों में चली गई थी। कहीं-कहीं इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि पिता की मृत्यु हो जाने के बाद चन्द्रगुप्त का पालन-पोषण उनकी माँ मुरा ने दस वर्ष तक किया और उसके बाद विष्णुगुप्त नाम के ब्राह्मण जिसे बाद में चाणक्य के नाम से जाना गया, ने किया था।
चन्द्रगुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा तक्षशिला में हुई थी। हालांकि उस समय तक्षशिला में केवल राजकुमारों को ही शिक्षा का अधिकार प्राप्त था, लेकिन विष्णुगुप्त ने अपने प्रभाव से चन्द्रगुप्त को वहाँ शिक्षा के लिए भेज दिया था। इस प्रकार चन्द्रगुप्त की शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की विख्यात शिक्षा संस्थान में चन्द्रगुप्त ने राजकुमारों को मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण किया।
चन्द्रगुप्त और घनानन्द:
घनानन्द को इतिहासकार नन्द वंश का आखरी वंशज मानते हैं। हालांकि घनानन्द एक शूरवीर राजा था जिसने अपने सैन्य बल पर उस समय लगभग पूरे उत्तर भारत को अपने अधीन कर लिया था। इसकी सैन्यशक्ति और वीरता के कारण ही सिकंदर ने भी उसके शासन काल में भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया था। लेकिन दूसरी ओर घनानन्द ने अत्याधिक कर लगा कर जनता के मन में अत्यधिक आक्रोश उत्पन्न कर दिया था। अपने दंभ में घनानन्द ने अपने हितेशियों और साथियों का भी अपमान करना शुरू कर दिया था। इसी क्रम में उसने अपने दरबार के सबसे अधिक ज्ञानी और विश्वासपात्र विष्णुगुप्त का भी अपमान कर दिया था। इस कारण विष्णुगुप्त ने पाटलीपुत्र छोड़ दी। दरबार छोड़ने के कुछ ही समय बाद जब उन्हें चन्द्रगुप्त के रूप में एक मेधावी और निडर बालक दिखाई दिया तब उन्होनें उस कच्ची मिट्टी रूपी बालक को एक वीर शासक के रूप में तैयार करना शुरू कर दिया।
कुछ समय बाद चन्द्रगुप्त ने विष्णुगुप्त जिसे बाद में चाणक्य के नाम से जाना गया, घनानन्द के शासन में सेंध लगा दी और अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि करनी शुरू कर दी। इसके बाद एक कुशल रणनीति के अंतर्गत मगध के सीमांत प्रदेशों में आक्रमण करके उन्हें जीतना शुरू कर दिया। चाणक्य की मदद के साथ ही चन्द्रगुप्त ने धीरे-धीरे घनानन्द के खजाने को लूटकर अपने हाथ मजबूत किए और सैन्य बल को मजबूत करना आरंभ कर दिया।
कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। कुछ ऐसा ही चन्द्रगुप्त नाम के बालक के साथ हुआ था, जो बचपन में खेल-खेल में राजा बनने का खेल खेलता था और युवा होते ही वास्तव का एक राजा बन गया। यह राजा एक महान शासक के रूप में और पहली बार भारत को एक अखंड भारत का रूप देने में भी सफल सिद्ध हुआ था। इसी कारण Chandragupta Maurya को महान चन्द्रगुप्त की उपाधि भी दी जाती है। इसके अलावा यह एक ऐसे शासक के रूप में भी जाने जाते हैं जिनका विवरण देशी ही नहीं बल्कि विदेशी ऐतिहासिक प्रमाणों में भी पाया जाता है।
असाधारण बालक का साधारण परिचय:
चन्द्रगुप्त के जन्म से संबन्धित अनेक प्रमाण पाये जाते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त के पिता नेपाल के तराई में एक छोटे से गणराज्य पिप्पलीवन के राजा थे। उनकी शत्रुओं द्वारा हत्या कर दिये जाने की स्थिति में चन्द्रगुप्त को उनकी माता पाटलीपुत्र ले आई थीं। वहीं कुछ विद्वान मानते हैं कि चन्द्रगुप्त की माँ ‘मुरा’ एक भीलनी थीं और वह मगध सम्राट घनानन्द के राजदरबार में एक नर्तकी थीं और पिता नन्द के दरबार में एक उच्च पद के सेना अधिकारी थे। नन्द द्वारा पिता को मार दिये जाने पर मूरा अपने पुत्र को लेकर जंगलों में चली गई थी। कहीं-कहीं इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि पिता की मृत्यु हो जाने के बाद चन्द्रगुप्त का पालन-पोषण उनकी माँ मुरा ने दस वर्ष तक किया और उसके बाद विष्णुगुप्त नाम के ब्राह्मण जिसे बाद में चाणक्य के नाम से जाना गया, ने किया था।
चन्द्रगुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा तक्षशिला में हुई थी। हालांकि उस समय तक्षशिला में केवल राजकुमारों को ही शिक्षा का अधिकार प्राप्त था, लेकिन विष्णुगुप्त ने अपने प्रभाव से चन्द्रगुप्त को वहाँ शिक्षा के लिए भेज दिया था। इस प्रकार चन्द्रगुप्त की शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की विख्यात शिक्षा संस्थान में चन्द्रगुप्त ने राजकुमारों को मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण किया।
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Explanation:
कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। कुछ ऐसा ही चन्द्रगुप्त नाम के बालक के साथ हुआ था, जो बचपन में खेल-खेल में राजा बनने का खेल खेलता था और युवा होते ही वास्तव का एक राजा बन गया। यह राजा एक महान शासक के रूप में और पहली बार भारत को एक अखंड भारत का रूप देने में भी सफल सिद्ध हुआ था। इसी कारण Chandragupta Maurya को महान चन्द्रगुप्त की उपाधि भी दी जाती है। इसके अलावा यह एक ऐसे शासक के रूप में भी जाने जाते हैं जिनका विवरण देशी ही नहीं बल्कि विदेशी ऐतिहासिक प्रमाणों में भी पाया जाता है।
असाधारण बालक का साधारण परिचय:
चन्द्रगुप्त के जन्म से संबन्धित अनेक प्रमाण पाये जाते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त के पिता नेपाल के तराई में एक छोटे से गणराज्य पिप्पलीवन के राजा थे। उनकी शत्रुओं द्वारा हत्या कर दिये जाने की स्थिति में चन्द्रगुप्त को उनकी माता पाटलीपुत्र ले आई थीं। वहीं कुछ विद्वान मानते हैं कि चन्द्रगुप्त की माँ ‘मुरा’ एक भीलनी थीं और वह मगध सम्राट घनानन्द के राजदरबार में एक नर्तकी थीं और पिता नन्द के दरबार में एक उच्च पद के सेना अधिकारी थे। नन्द द्वारा पिता को मार दिये जाने पर मूरा अपने पुत्र को लेकर जंगलों में चली गई थी। कहीं-कहीं इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि पिता की मृत्यु हो जाने के बाद चन्द्रगुप्त का पालन-पोषण उनकी माँ मुरा ने दस वर्ष तक किया और उसके बाद विष्णुगुप्त नाम के ब्राह्मण जिसे बाद में चाणक्य के नाम से जाना गया, ने किया था।
चन्द्रगुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा तक्षशिला में हुई थी। हालांकि उस समय तक्षशिला में केवल राजकुमारों को ही शिक्षा का अधिकार प्राप्त था, लेकिन विष्णुगुप्त ने अपने प्रभाव से चन्द्रगुप्त को वहाँ शिक्षा के लिए भेज दिया था। इस प्रकार चन्द्रगुप्त की शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की विख्यात शिक्षा संस्थान में चन्द्रगुप्त ने राजकुमारों को मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण किया।
चन्द्रगुप्त और घनानन्द:
घनानन्द को इतिहासकार नन्द वंश का आखरी वंशज मानते हैं। हालांकि घनानन्द एक शूरवीर राजा था जिसने अपने सैन्य बल पर उस समय लगभग पूरे उत्तर भारत को अपने अधीन कर लिया था। इसकी सैन्यशक्ति और वीरता के कारण ही सिकंदर ने भी उसके शासन काल में भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया था। लेकिन दूसरी ओर घनानन्द ने अत्याधिक कर लगा कर जनता के मन में अत्यधिक आक्रोश उत्पन्न कर दिया था। अपने दंभ में घनानन्द ने अपने हितेशियों और साथियों का भी अपमान करना शुरू कर दिया था। इसी क्रम में उसने अपने दरबार के सबसे अधिक ज्ञानी और विश्वासपात्र विष्णुगुप्त का भी अपमान कर दिया था। इस कारण विष्णुगुप्त ने पाटलीपुत्र छोड़ दी। दरबार छोड़ने के कुछ ही समय बाद जब उन्हें चन्द्रगुप्त के रूप में एक मेधावी और निडर बालक दिखाई दिया तब उन्होनें उस कच्ची मिट्टी रूपी बालक को एक वीर शासक के रूप में तैयार करना शुरू कर दिया।
कुछ समय बाद चन्द्रगुप्त ने विष्णुगुप्त जिसे बाद में चाणक्य के नाम से जाना गया, घनानन्द के शासन में सेंध लगा दी और अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि करनी शुरू कर दी। इसके बाद एक कुशल रणनीति के अंतर्गत मगध के सीमांत प्रदेशों में आक्रमण करके उन्हें जीतना शुरू कर दिया। चाणक्य की मदद के साथ ही चन्द्रगुप्त ने धीरे-धीरे घनानन्द के खजाने को लूटकर अपने हाथ मजबूत किए और सैन्य बल को मजबूत करना आरंभ कर दिया।
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कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। कुछ ऐसा ही चन्द्रगुप्त नाम के बालक के साथ हुआ था, जो बचपन में खेल-खेल में राजा बनने का खेल खेलता था और युवा होते ही वास्तव का एक राजा बन गया। यह राजा एक महान शासक के रूप में और पहली बार भारत को एक अखंड भारत का रूप देने में भी सफल सिद्ध हुआ था। इसी कारण Chandragupta Maurya को महान चन्द्रगुप्त की उपाधि भी दी जाती है। इसके अलावा यह एक ऐसे शासक के रूप में भी जाने जाते हैं जिनका विवरण देशी ही नहीं बल्कि विदेशी ऐतिहासिक प्रमाणों में भी पाया जाता है।
असाधारण बालक का साधारण परिचय:
चन्द्रगुप्त के जन्म से संबन्धित अनेक प्रमाण पाये जाते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त के पिता नेपाल के तराई में एक छोटे से गणराज्य पिप्पलीवन के राजा थे। उनकी शत्रुओं द्वारा हत्या कर दिये जाने की स्थिति में चन्द्रगुप्त को उनकी माता पाटलीपुत्र ले आई थीं। वहीं कुछ विद्वान मानते हैं कि चन्द्रगुप्त की माँ ‘मुरा’ एक भीलनी थीं और वह मगध सम्राट घनानन्द के राजदरबार में एक नर्तकी थीं और पिता नन्द के दरबार में एक उच्च पद के सेना अधिकारी थे। नन्द द्वारा पिता को मार दिये जाने पर मूरा अपने पुत्र को लेकर जंगलों में चली गई थी। कहीं-कहीं इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि पिता की मृत्यु हो जाने के बाद चन्द्रगुप्त का पालन-पोषण उनकी माँ मुरा ने दस वर्ष तक किया और उसके बाद विष्णुगुप्त नाम के ब्राह्मण जिसे बाद में चाणक्य के नाम से जाना गया, ने किया था।
चन्द्रगुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा तक्षशिला में हुई थी। हालांकि उस समय तक्षशिला में केवल राजकुमारों को ही शिक्षा का अधिकार प्राप्त था, लेकिन विष्णुगुप्त ने अपने प्रभाव से चन्द्रगुप्त को वहाँ शिक्षा के लिए भेज दिया था। इस प्रकार चन्द्रगुप्त की शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की विख्यात शिक्षा संस्थान में चन्द्रगुप्त ने राजकुमारों को मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण किया।
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