इतिहास लेखन में पुरुषप्रधान दृष्टिकोण का प्रभाव था। सीमाँ-द-बोवा नामक फ्रांसीसी विदुषी ने इतिहास लेखन में स्त्रीवादी भूमिका प्रस्तुत की।
इसके कारण स्त्रीवादी इतिहास लेखन में स्त्रियों का समावेश किया।
इतिहास लेखन के क्षेत्र में अपनाए गए पुरुषप्रधान दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने पर जोर दिया। सीमाँ-द-बोवा की स्त्रीवादी भूमिका के कारण स्त्रियों से संबंधित नौकरी, ट्रेड यूनियन तथा स्त्रियों के पारिवारिक जीवन से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार करने वाला अनुसंधान शुरू हुआ।
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इतिहास लेखन के क्षेत्र में अपनाए गए पुरुषप्रधान दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने पर जोर दिया। सीमाँ-द-बोवा की स्त्रीवादी भूमिका के कारण स्त्रियों से संबंधित नौकरी, ट्रेड यूनियन तथा स्त्रियों के पारिवारिक जीवन से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विचार करने वाला अनुसंधान शुरू हुआ।