भारतीय संस्कृति में शंख (Conch) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है। ज़रूरत है इसके और अनुसन्धान वा वैज्ञानिक विश्लेषण की। उड़ीसा में जगन्नाथपुरी शंख-क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि इसका भौगोलिक आकार शंख सदृश है।[1] हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है। कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। शंख में जल भरकर ऊँ नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता ह
शंख सागर के जलचर का बनाया हुआ एक ढाँचा है, जो कि ज्यादातर पेचदारवामावर्त या दक्षिणावर्त में बना होता है। यह हिन्दु धर्म में अति पवित्र माना जाता है। यह धर्म का प्रतीक माना जाता है। यह भगवान विष्णु के दांए ऊपरी हाथ में शोभा पाता दिखाया जाता है। धार्मिक अवसरों पर इसे फूँक कर बजाया भी जाता है। शैव मत में शंख को पूजा मे वर्जित माना गया है.
भारतीय संस्कृति में शंख (Conch) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है। ज़रूरत है इसके और अनुसन्धान वा वैज्ञानिक विश्लेषण की। उड़ीसा में जगन्नाथपुरी शंख-क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि इसका भौगोलिक आकार शंख सदृश है।[1] हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है। कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। शंख में जल भरकर ऊँ नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।
हिन्दू धर्म में शंख का बहुत बङा महत्व है। शंख एक जलीय जीव का कवच है। यह जलीय जीव समुंद्र में पाया जाता है।
मान्यता है कि शंख की उत्पत्ति समंद्र मंथन के दौरान हुई थी। जिसे भगवान विष्णु जी ने धारण किये थे। शंख की विशेषताएं-
शंख हमारे जीवन के लिए स्वास्थ्य और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
* शंख में लक्ष्मी का वास होता है।
*. जब आप शंख बाहर से लाते है तो सबसे पहले उसे गंगा जल और दूध से शंख को धोकर उसे पूजा स्थल में स्थापित करने चाहिए।
* हिंदू धर्म में शंख को पूजा स्थल में रखते हैं और इसकी पूजा करते हैं।
*.शंख का उपयोग सुबह- शाम पूजा के बाद बजाने में किया जाता है।
*.शंख की ध्वनि मांगलिक होतें है। सभी मांगलिक कार्यों में शंख का उपयोग किया जाता है।
*.पूजा के बाद शंख ध्वनि तीन बार करना चाहिए फिर उसे पानी से धोकर रखना चाहिए।
*.शंख के ध्वनि से ॐ शब्द की ध्वनि उत्पन्न होती है।
*. शंख सफेद रंग का होता है, शंख पर कोई दूसरा रंग नहीं चढता है।
शंख के प्रकार-
शंख अनेक प्रकार के होतें है। सभी शंख की विशेषताएं अलग अलग होतीं हैं और पूजन विधि एवं उपयोग भी भिन्न भिन्न होते हैं।
शंख की आकृति के आधार पर शंख मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
1. दक्षिणावर्ती शंख,
2. वामावर्त शंख,
3. मध्यवर्ती शंख,
इसके अलावा भी शंख के कई प्रकार है जो धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, जैसे- मोती शंख, लक्ष्मी शंख, इत्यादि।
शंख की विशेषताएं, स्वास्थ्य के लिये महत्व, धार्मिक महत्व, जानने के बाद पता चलता है कि शंख हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। प्रत्येक लोगों को शंख का उपयोग करना चाहिए।
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भारतीय संस्कृति में शंख (Conch) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है। ज़रूरत है इसके और अनुसन्धान वा वैज्ञानिक विश्लेषण की। उड़ीसा में जगन्नाथपुरी शंख-क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि इसका भौगोलिक आकार शंख सदृश है।[1] हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है। कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। शंख में जल भरकर ऊँ नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता ह
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शंख सागर के जलचर का बनाया हुआ एक ढाँचा है, जो कि ज्यादातर पेचदारवामावर्त या दक्षिणावर्त में बना होता है। यह हिन्दु धर्म में अति पवित्र माना जाता है। यह धर्म का प्रतीक माना जाता है। यह भगवान विष्णु के दांए ऊपरी हाथ में शोभा पाता दिखाया जाता है। धार्मिक अवसरों पर इसे फूँक कर बजाया भी जाता है। शैव मत में शंख को पूजा मे वर्जित माना गया है.
भारतीय संस्कृति में शंख (Conch) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। समुद्री प्राणी का खोल शंख कितना चमत्कारी हो सकता है। ज़रूरत है इसके और अनुसन्धान वा वैज्ञानिक विश्लेषण की। उड़ीसा में जगन्नाथपुरी शंख-क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि इसका भौगोलिक आकार शंख सदृश है।[1] हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है। कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर जल गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। शंख में जल भरकर ऊँ नमोनारायण का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।
हिन्दू धर्म में शंख का बहुत बङा महत्व है। शंख एक जलीय जीव का कवच है। यह जलीय जीव समुंद्र में पाया जाता है।
मान्यता है कि शंख की उत्पत्ति समंद्र मंथन के दौरान हुई थी। जिसे भगवान विष्णु जी ने धारण किये थे। शंख की विशेषताएं-
शंख हमारे जीवन के लिए स्वास्थ्य और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
* शंख में लक्ष्मी का वास होता है।
*. जब आप शंख बाहर से लाते है तो सबसे पहले उसे गंगा जल और दूध से शंख को धोकर उसे पूजा स्थल में स्थापित करने चाहिए।
* हिंदू धर्म में शंख को पूजा स्थल में रखते हैं और इसकी पूजा करते हैं।
*.शंख का उपयोग सुबह- शाम पूजा के बाद बजाने में किया जाता है।
*.शंख की ध्वनि मांगलिक होतें है। सभी मांगलिक कार्यों में शंख का उपयोग किया जाता है।
*.पूजा के बाद शंख ध्वनि तीन बार करना चाहिए फिर उसे पानी से धोकर रखना चाहिए।
*.शंख के ध्वनि से ॐ शब्द की ध्वनि उत्पन्न होती है।
*. शंख सफेद रंग का होता है, शंख पर कोई दूसरा रंग नहीं चढता है।
शंख के प्रकार-
शंख अनेक प्रकार के होतें है। सभी शंख की विशेषताएं अलग अलग होतीं हैं और पूजन विधि एवं उपयोग भी भिन्न भिन्न होते हैं।
शंख की आकृति के आधार पर शंख मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
1. दक्षिणावर्ती शंख,
2. वामावर्त शंख,
3. मध्यवर्ती शंख,
इसके अलावा भी शंख के कई प्रकार है जो धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, जैसे- मोती शंख, लक्ष्मी शंख, इत्यादि।
शंख की विशेषताएं, स्वास्थ्य के लिये महत्व, धार्मिक महत्व, जानने के बाद पता चलता है कि शंख हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। प्रत्येक लोगों को शंख का उपयोग करना चाहिए।
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