महादेवी वर्माजी को पशु - पक्षियों के प्रति सहज लगाव था । उन्होंने कुत्ते - बिल्ली जैसे पशु पाल रखे थे । इतना ही नहीं अपने पशु जगत में हिरनों के प्रति भी काफी ममत्व था । उनके मन में प्राणियों के प्रति करुणा की प्रबल भावना थी । एक बार महादेवी वर्माजी के हिरण - शावक को पाल रखा था । उसका नाम सोना रखा था । सोना के अनाथ शिशुरुप को देखकर महादेवीजी अपनी ममता को रोक नहीं पाती । वे इसे पालना स्वीकार कर लेती है । महादेवी वर्मा उसे रात में अपने पलंग के पास ही रखती थी । सोना लेखिका के स्नेह से अच्छी तरह परिचित थी । उसे लेखिका से जरा भी डर नहीं लगता था । इसलिए सोना हिरणी अपना शरीर उनके पैरों से रगड़ती है । महादेवीजी सोना की बाल सुलभ चेस्ष्टाओं से आनन्दित होती है । सोना हिरणी जब महादेवीजी की साडी को अपने मुँह में भर लेती है , तब वे उसे डाँटती नहीं और न ही वैसा करने से मना करती है । इतना ही नहीं सोना कभी -कभी उनकी चोटी भी चबाती है, तो भी महादेवीजी उसे नहीं रोकती है । इस प्रकार महादेवीजी का मातृवत वात्सल्य दिखाई देता है । महादेवीजी का पशुओं के प्रति स्नेह का दर्शन ही सोना द्वारा होता है ।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/1873042/
Explanation:
"महादेवी वर्मा को पशु पक्षियों से अत्यंत प्रेम था। इनके लिए महादेवी वात्सलय,ममता और प्यार की देवी थी।
"महादेवी वर्मा को पशु पक्षियों से अत्यंत प्रेम था। इनके लिए महादेवी वात्सलय,ममता और प्यार की देवी थी।महादेवी का ये पशु प्रेम उनकी कहानियों में झलकता है।
"महादेवी वर्मा को पशु पक्षियों से अत्यंत प्रेम था। इनके लिए महादेवी वात्सलय,ममता और प्यार की देवी थी।महादेवी का ये पशु प्रेम उनकी कहानियों में झलकता है।उनकी गौरा गाय की कहानी हम सब ने पढ़ी होगी।"
"महादेवी वर्मा को पशु पक्षियों से अत्यंत प्रेम था। इनके लिए महादेवी वात्सलय,ममता और प्यार की देवी थी।महादेवी का ये पशु प्रेम उनकी कहानियों में झलकता है।उनकी गौरा गाय की कहानी हम सब ने पढ़ी होगी।"
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Answer:
महादेवी वर्माजी को पशु - पक्षियों के प्रति सहज लगाव था । उन्होंने कुत्ते - बिल्ली जैसे पशु पाल रखे थे । इतना ही नहीं अपने पशु जगत में हिरनों के प्रति भी काफी ममत्व था । उनके मन में प्राणियों के प्रति करुणा की प्रबल भावना थी । एक बार महादेवी वर्माजी के हिरण - शावक को पाल रखा था । उसका नाम सोना रखा था । सोना के अनाथ शिशुरुप को देखकर महादेवीजी अपनी ममता को रोक नहीं पाती । वे इसे पालना स्वीकार कर लेती है । महादेवी वर्मा उसे रात में अपने पलंग के पास ही रखती थी । सोना लेखिका के स्नेह से अच्छी तरह परिचित थी । उसे लेखिका से जरा भी डर नहीं लगता था । इसलिए सोना हिरणी अपना शरीर उनके पैरों से रगड़ती है । महादेवीजी सोना की बाल सुलभ चेस्ष्टाओं से आनन्दित होती है । सोना हिरणी जब महादेवीजी की साडी को अपने मुँह में भर लेती है , तब वे उसे डाँटती नहीं और न ही वैसा करने से मना करती है । इतना ही नहीं सोना कभी -कभी उनकी चोटी भी चबाती है, तो भी महादेवीजी उसे नहीं रोकती है । इस प्रकार महादेवीजी का मातृवत वात्सल्य दिखाई देता है । महादेवीजी का पशुओं के प्रति स्नेह का दर्शन ही सोना द्वारा होता है ।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/1873042/
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"महादेवी वर्मा को पशु पक्षियों से अत्यंत प्रेम था। इनके लिए महादेवी वात्सलय,ममता और प्यार की देवी थी।
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"महादेवी वर्मा को पशु पक्षियों से अत्यंत प्रेम था। इनके लिए महादेवी वात्सलय,ममता और प्यार की देवी थी।महादेवी का ये पशु प्रेम उनकी कहानियों में झलकता है।उनकी गौरा गाय की कहानी हम सब ने पढ़ी होगी।"
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