भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harischandra) हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक और संस्कारों में एक महान नायक थे। वे हिंदी साहित्य के सुधार के लिए अपने जीवन भर योगदान दिया है। हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य में नयी पद्धतियों का उद्भव किया और हिंदी की सुंदरता को बढ़ावा दिया। वे हिंदी के अंग्रेजी रूप से लिखने वाले पहले लेखक थे और हिंदी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अपने योगदान को जाना जाता है। हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य में कई कहानियां, उपन्यास, नाटक, जीवनीयों और पत्रिकाएं लिखी हैं। वे हिंदी साहित्य में स्थापना कक
हिन्दी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किन्तु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिन्दी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया।उन्होंने 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका','कविवचनसुधा' और 'बाला बोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया । वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, सम्पादक,निबन्धकार, एवं कुशल वक्ता भी थे। भारतेन्दु जी ने मात्र चौंतीस वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की। उन्होंने मात्रा और गुणवत्ताकी दृष्टि से इतना लिखा और इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया।
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भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harischandra) हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक और संस्कारों में एक महान नायक थे। वे हिंदी साहित्य के सुधार के लिए अपने जीवन भर योगदान दिया है। हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य में नयी पद्धतियों का उद्भव किया और हिंदी की सुंदरता को बढ़ावा दिया। वे हिंदी के अंग्रेजी रूप से लिखने वाले पहले लेखक थे और हिंदी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अपने योगदान को जाना जाता है। हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य में कई कहानियां, उपन्यास, नाटक, जीवनीयों और पत्रिकाएं लिखी हैं। वे हिंदी साहित्य में स्थापना कक
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हिन्दी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किन्तु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिन्दी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया। उन्होंने 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका', 'कविवचनसुधा' और 'बाला बोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया । वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, सम्पादक,निबन्धकार, एवं कुशल वक्ता भी थे। भारतेन्दु जी ने मात्र चौंतीस वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की। उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा और इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया।