परिश्रम अथवा कार्य ही मनुष्य की वास्तविक पूजा-अर्चना है । इस पूजा के बिना मनुष्य का सुखी-समृद्ध होना अत्यंत कठिन है । वह व्यक्ति जो परिश्रम से दूर रहता है अर्थात् कर्महीन, आलसी व्यक्ति सदैव दु:खी व दूसरों पर निर्भर रहने वाला होता है।
परिश्रमी व्यक्ति अपने कर्म के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं । उन्हें जिस वस्तु की आकांक्षा होती है उसे पाने के लिए रास्ता चुनते हैं । ऐसे व्यक्ति मुश्किलों व संकटों के आने से भयभीत नहीं होते अपितु उस संकट के निदान का हल ढूँढ़ते हैं। अपनी कमियों के लिए वे दूसरों पर लांछन या दोषारोपण नहीं करते ।
दूसरी ओर कर्महीन अथवा आलसी व्यक्ति सदैव भाग्य पर निर्भर होते हैं । अपनी कमियों व दोषों के निदान के लिए प्रयास न कर वह भाग्य का दोष मानते हैं । उसके अनुसार जीवन में उन्हें जो कुछ भी मिल रहा है या फिर जो भी उनकी उपलब्धि से परे है उन सब में ईश्वर की इच्छा है । वह भाग्य के सहारे रहते हुए जीवन पर्यंत कर्म क्षेत्र से भागता रहता है । वह अपनी कल्पनाओं में ही सुख खोजता रहता है परंतु सुख किसी मृगतृष्णा की भाँति सदैव उससे दूर बना रहता है ।
परिश्रम का महत्व व्यक्ति के जीवन में गहरा प्रभाव डालता है। परिश्रम समर्पण, मेहनत और निष्ठा का प्रतीक है। यह सफलता की मूल कुंजी है। परिश्रमसी जीवन जीने वाले लोग अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अथक प्रयास करते हैं। यह न केवल उनकी योग्यता को बढ़ाता है, बल्कि संघर्षों के बावजूद उन्हें उच्चतम सफलता तक पहुंचाता है। परिश्रम न केवल आवश्यक नौकरियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे स्वयं को विकसित करके अपनी क्षमताओं का भी विकास किया जा सकता है। सफलता के लिए दृढ़ संकल्प, अवधारणाओं को क्रियान्वित करने का इरादा और प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण परिश्रम की महत्वपूर्ण गुणाधार हैं।
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परिश्रम अथवा कार्य ही मनुष्य की वास्तविक पूजा-अर्चना है । इस पूजा के बिना मनुष्य का सुखी-समृद्ध होना अत्यंत कठिन है । वह व्यक्ति जो परिश्रम से दूर रहता है अर्थात् कर्महीन, आलसी व्यक्ति सदैव दु:खी व दूसरों पर निर्भर रहने वाला होता है।
परिश्रमी व्यक्ति अपने कर्म के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं । उन्हें जिस वस्तु की आकांक्षा होती है उसे पाने के लिए रास्ता चुनते हैं । ऐसे व्यक्ति मुश्किलों व संकटों के आने से भयभीत नहीं होते अपितु उस संकट के निदान का हल ढूँढ़ते हैं। अपनी कमियों के लिए वे दूसरों पर लांछन या दोषारोपण नहीं करते ।
दूसरी ओर कर्महीन अथवा आलसी व्यक्ति सदैव भाग्य पर निर्भर होते हैं । अपनी कमियों व दोषों के निदान के लिए प्रयास न कर वह भाग्य का दोष मानते हैं । उसके अनुसार जीवन में उन्हें जो कुछ भी मिल रहा है या फिर जो भी उनकी उपलब्धि से परे है उन सब में ईश्वर की इच्छा है । वह भाग्य के सहारे रहते हुए जीवन पर्यंत कर्म क्षेत्र से भागता रहता है । वह अपनी कल्पनाओं में ही सुख खोजता रहता है परंतु सुख किसी मृगतृष्णा की भाँति सदैव उससे दूर बना रहता है ।
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परिश्रम का महत्व व्यक्ति के जीवन में गहरा प्रभाव डालता है। परिश्रम समर्पण, मेहनत और निष्ठा का प्रतीक है। यह सफलता की मूल कुंजी है। परिश्रमसी जीवन जीने वाले लोग अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अथक प्रयास करते हैं। यह न केवल उनकी योग्यता को बढ़ाता है, बल्कि संघर्षों के बावजूद उन्हें उच्चतम सफलता तक पहुंचाता है। परिश्रम न केवल आवश्यक नौकरियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे स्वयं को विकसित करके अपनी क्षमताओं का भी विकास किया जा सकता है। सफलता के लिए दृढ़ संकल्प, अवधारणाओं को क्रियान्वित करने का इरादा और प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण परिश्रम की महत्वपूर्ण गुणाधार हैं।