यह कहानी है तीन लोगों की, जिनसे हमें कई चीजें सीखने को मिलती हैं। किस प्रकार एक हुनरमंद इंसान भी कभी-कभी अपना हुनर भूल कर एक साधारण इंसान बन जाता है। लेकिन फिर वो कैसे आगे बढ़ पाता है। ऐसा ही कुछ बताती एक कहानी मैं आपके सामने लेकर आया हूँ। आइये पढ़ें कर्तव्य बोध की कहानी : सूर्योदय :- The Brightness once again :-
कर्तव्य बोध की कहानी : सूर्योदय :- The Brightness once again
कर्तव्य बोध की कहानी : सूर्योदय
एक राज्य में वीर प्रताप नाम का एक राजा रहता था। वह बहुत ही बहादुर और सूझवान राजा था। उसके राज्य में प्रजा बहुत सुख से गुजर बसर करती थी। परन्तु सर्वगुण संपन्न होने के बाद भी उसके सामने एक दुविधा थी। इस दुविधा का कारण था उसका स्वयं का पुत्र सूर्यवीर सिंह।
सूर्यवीर बहुत ही आलसी स्वभाव का था। वीर प्रताप उसे बहुत समझाते थे की इस तरह काम से जी चुराने के कारण उसका अनर्थ ही होगा। लेकिन सूर्यवीर एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता।
साम्राज्य की दौलत वो अपने बेकार के कामों और मौज मस्ती में लुटा देता था। जब इंसान का दिमाग गलत कामों में लिप्त हो जाता है तो उसे किसी की सही सलाह भी बुरी प्रतीत होती है। फिर भी वीर प्रताप ने उसे सुधारने के बहुत सारे हथकंडे अपनाये। धीरे-धीरे सब प्रयास व्यर्थ गए।
ऐसा नहीं था की वो बचपन से ही ऐसा रहा हो। बचपन में सूर्यवीर एक बहुत ही मेधावी छात्र था। गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने के समय हर क्षेत्र में वह सबसे आगे रहता था। सूर्यवीर का स्वास्थ्य और शरीर एक योद्धा की भाँति वज्र के सामान था और दिमाग तो इतना तेज था की जो एक बार देखता या पढता था कभी भूलता नहीं था।
मगर जब से उसकी शिक्षा पूर्ण हुयी और वो राजमहल वापस आया तब से उसकी संगत कुछ ऐसे लोगों के साथ हुयी जो कुछ काम नहीं करते थे। वो सब राज्य मंत्रियों के बिगड़े हुए बेटे थे। वीर प्रताप ने बहुत बार उसे समझाया और सुधरने की चेतावनी तक दे डाली। कोई रास्ता न निकलता देख वीर प्रताप बहुत परेशान रहने लगा।
गोधूलि का समय था। राजा वीर प्रताप सूर्य की ओर देख रहे थे। आज ऐसा लग रहा था जैसे सूर्य के प्रकाश की अभी भी इस राजा को आवश्यकता हो। लेकिन सूर्य पश्चिम में लालिमा बिखेरते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी ने उसे जलाया हो और अब उसके अंतिम समय में वह असहाय सा होकर प्रकाशहीन हो रहा हो। तभी राज्य के महामंत्री कक्ष में पहुंचे और देखा की वीर प्रताप महल के झरोखे से डूबते हुए सूरज पर आँखें गड़ाये हुए थे। वो विचारों के सागर में डूबते चले जा रहे थे। ध्यान एक शून्य में जा रहा था चारों तरफ सन्नाटा था।
“महाराज!”
महामंत्री के इस शब्द ने वीर प्रताप डूबते हुए विचारों से बाहर निकाला और शून्य में किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। महामंत्री राजा की इस हालत को अच्छी तरह जानते थे फिर भी उनकी ये हालत देख उसके मंत्री राघवेंद्र से रहा नहीं गया। उसने राजा से पूछा,
“ महाराज, कई दिनों से हम देख रहे हैं आप बहुत चिंतित रहते हैं। कोई समस्या है क्या महाराज?”
“ राघवेंद्र, समस्या तो ऐसी है की हम चाह कर भी कुछ नहीं कर
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कर्तव्यबोध कहानी का सारांश लिखो
Explanation:
यह कहानी है तीन लोगों की, जिनसे हमें कई चीजें सीखने को मिलती हैं। किस प्रकार एक हुनरमंद इंसान भी कभी-कभी अपना हुनर भूल कर एक साधारण इंसान बन जाता है। लेकिन फिर वो कैसे आगे बढ़ पाता है। ऐसा ही कुछ बताती एक कहानी मैं आपके सामने लेकर आया हूँ। आइये पढ़ें कर्तव्य बोध की कहानी : सूर्योदय :- The Brightness once again :-
कर्तव्य बोध की कहानी : सूर्योदय :- The Brightness once again
कर्तव्य बोध की कहानी : सूर्योदय
एक राज्य में वीर प्रताप नाम का एक राजा रहता था। वह बहुत ही बहादुर और सूझवान राजा था। उसके राज्य में प्रजा बहुत सुख से गुजर बसर करती थी। परन्तु सर्वगुण संपन्न होने के बाद भी उसके सामने एक दुविधा थी। इस दुविधा का कारण था उसका स्वयं का पुत्र सूर्यवीर सिंह।
सूर्यवीर बहुत ही आलसी स्वभाव का था। वीर प्रताप उसे बहुत समझाते थे की इस तरह काम से जी चुराने के कारण उसका अनर्थ ही होगा। लेकिन सूर्यवीर एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता।
साम्राज्य की दौलत वो अपने बेकार के कामों और मौज मस्ती में लुटा देता था। जब इंसान का दिमाग गलत कामों में लिप्त हो जाता है तो उसे किसी की सही सलाह भी बुरी प्रतीत होती है। फिर भी वीर प्रताप ने उसे सुधारने के बहुत सारे हथकंडे अपनाये। धीरे-धीरे सब प्रयास व्यर्थ गए।
ऐसा नहीं था की वो बचपन से ही ऐसा रहा हो। बचपन में सूर्यवीर एक बहुत ही मेधावी छात्र था। गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने के समय हर क्षेत्र में वह सबसे आगे रहता था। सूर्यवीर का स्वास्थ्य और शरीर एक योद्धा की भाँति वज्र के सामान था और दिमाग तो इतना तेज था की जो एक बार देखता या पढता था कभी भूलता नहीं था।
मगर जब से उसकी शिक्षा पूर्ण हुयी और वो राजमहल वापस आया तब से उसकी संगत कुछ ऐसे लोगों के साथ हुयी जो कुछ काम नहीं करते थे। वो सब राज्य मंत्रियों के बिगड़े हुए बेटे थे। वीर प्रताप ने बहुत बार उसे समझाया और सुधरने की चेतावनी तक दे डाली। कोई रास्ता न निकलता देख वीर प्रताप बहुत परेशान रहने लगा।
गोधूलि का समय था। राजा वीर प्रताप सूर्य की ओर देख रहे थे। आज ऐसा लग रहा था जैसे सूर्य के प्रकाश की अभी भी इस राजा को आवश्यकता हो। लेकिन सूर्य पश्चिम में लालिमा बिखेरते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी ने उसे जलाया हो और अब उसके अंतिम समय में वह असहाय सा होकर प्रकाशहीन हो रहा हो। तभी राज्य के महामंत्री कक्ष में पहुंचे और देखा की वीर प्रताप महल के झरोखे से डूबते हुए सूरज पर आँखें गड़ाये हुए थे। वो विचारों के सागर में डूबते चले जा रहे थे। ध्यान एक शून्य में जा रहा था चारों तरफ सन्नाटा था।
“महाराज!”
महामंत्री के इस शब्द ने वीर प्रताप डूबते हुए विचारों से बाहर निकाला और शून्य में किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। महामंत्री राजा की इस हालत को अच्छी तरह जानते थे फिर भी उनकी ये हालत देख उसके मंत्री राघवेंद्र से रहा नहीं गया। उसने राजा से पूछा,
“ महाराज, कई दिनों से हम देख रहे हैं आप बहुत चिंतित रहते हैं। कोई समस्या है क्या महाराज?”
“ राघवेंद्र, समस्या तो ऐसी है की हम चाह कर भी कुछ नहीं कर
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