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हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टे से मुँह ढाँके सो रही थीं। उन पर से जो भेड़ें दौड़ी तो न जाने वह सपने में किन महलों की सैर कर रही थीं, दुपट्टे में उलझी हुई | 'मारो-मारो' चीखने लगीं। इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारीवाली की टोकरी पर टूट पड़ीं।
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हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टे से मुँह ढाँके सो रही थीं। उन पर से जो भेड़ें दौड़ी तो न जाने वह सपने में किन महलों की सैर कर रही थीं, दुपट्टे में उलझी हुई | 'मारो-मारो' चीखने लगीं। इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारीवाली की टोकरी पर टूट पड़ीं।
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