तुलसीदास ने ईश्वर की अविचल भक्ति पाने के लिए प्रेम और भक्ति का मार्ग अपनाने की सलाह दी है। तुलसीदास कहते हैं कि यदि ईश्वर को पाना है, तो जो ईश्वर को पाने की राह में जो बाधक हो वह चाहे निकटतम संबंधी ही क्यों ना हो, उसका परित्याग करने से भी संकोच नहीं करना चाहिए।
तुलसीदास ने ईश्वर की अविचल भक्ति पाने के लिए प्रेम और भक्ति का मार्ग अपनाने की सलाह दी है। तुलसीदास कहते हैं कि यदि ईश्वर को पाना है, तो जो ईश्वर को पाने की राह में जो बाधक हो वह चाहे निकटतम संबंधी ही क्यों ना हो, उसका परित्याग करने से भी संकोच नहीं करना चाहिए। तभी हम ईश्वर रूपी अविचल भक्ति को पा सकते हैं।
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तुलसीदास ने ईश्वर की अविचल भक्ति पाने के लिए प्रेम और भक्ति का मार्ग अपनाने की सलाह दी है। तुलसीदास कहते हैं कि यदि ईश्वर को पाना है, तो जो ईश्वर को पाने की राह में जो बाधक हो वह चाहे निकटतम संबंधी ही क्यों ना हो, उसका परित्याग करने से भी संकोच नहीं करना चाहिए।
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तुलसीदास ने ईश्वर की अविचल भक्ति पाने के लिए प्रेम और भक्ति का मार्ग अपनाने की सलाह दी है। तुलसीदास कहते हैं कि यदि ईश्वर को पाना है, तो जो ईश्वर को पाने की राह में जो बाधक हो वह चाहे निकटतम संबंधी ही क्यों ना हो, उसका परित्याग करने से भी संकोच नहीं करना चाहिए। तभी हम ईश्वर रूपी अविचल भक्ति को पा सकते हैं।
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